।। ॐ नमः शिवाय।।

इन दिनों पितृ पक्ष चल रहा है ,सामान्यतः इसे श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है, एक जिज्ञासा सब के मन रहती है की इसका पितृ दोष से कोई सम्बन्ध है क्या ? और यदि है तो इसे ज्योतिषीय रूप में किस प्रकार परिभाषित किया जाय। किसीकुंडली में पितृ दोष है या नहीं इस बात का कैसे पता चले क्योंकि

पितृ दोष के बारे में बहुत ही भ्रांतियां प्रचलित है।
किसी भी कुंडली को देखने पर आसानी से पता लगाया जा सकता है कि जातक की कुंडली में पितृ दोष है या नहीं। एक भ्रान्ति और भी देखने में आई है की कुछ विद्वान इसे कालसर्प दोष से भी जोड़ कर देखते हैं, जो की तार्किक नहीं है।
यहाँ ये समझना बहुत ही जरुरी है की पितृ दोष का काल सर्प दोष से कोई सम्बन्ध नहीं है। कुंडली में सूर्य, राहु एवं नवम भाव का सीधा सम्बन्ध पितृ दोष से है क्योकि राहु पितामह(दादा) और केतु को मातामह(नाना) के रूप में भी माना जाता है।
नवम भाव पिता एवं पूर्वजो का का भाव है अतः इनके आपसी सम्बन्धो के कारण ही पितृ दोष का निर्माण होता है। अतः जब तक सूर्य ,राहू और नवम भाव मे संबंध नहीं होगा तब तक कुंडली मे पितृ दोष नहीं माना जाएगा ।कोई कोई विद्वान पंचम भाव से भी देखतें हैं।

राहू का संबंध पितृो से इसलिए भी है क्योंकि यह एक छाया ग्रह है,और हमारे पूर्वज भी एक छाया स्वरुप ही है,
यहाँ यह जानना ज़रुरी है की इनका हमारे जीवन से क्या सम्बन्ध है, कोई भी वस्तु स्थूल रूप की अपेक्षा सूक्ष्म रूप में अधिक प्रभावी होती है इसका उदहारण परमाणु बम है,जब हमारे पूर्वज स्थूल रूप (जीवित) में हमारे साथ होते है तो सामाजिक मर्यादाऒं के कारण वे परिस्थितिओं से समझौता कर हमारे साथ अपना जीवन गुजार देते है, दुःखी होते हुए भी अपना दुःख प्रकट नहीं करते किन्तु जब वे देवलोक गमन कर जाते है तब वे सूक्ष्म शरीर धारण कर लेते हैं और इसी सूक्ष्म शरीर में वे अत्यन्त प्रभावी हो जाते है,स्थूल शरीर में सामाजिक मर्यादायें उन्हें उग्र नहीं होने देती किन्तु सूक्ष्म शरीर में ये सब मर्यादाएं नहीं होती इसलिए कभी किन्ही जातकों (व्यक्तियों)के पूर्वज पितृ रूप में उन्हें यदा कदा कमोबेश कष्ट देते हैं जिसका कारण पितृ दोष माना जाता है, लकिन पितृ सर्वदा कष्ट नहीं देते यदि वे इस संसार से विदा होते समय अपने सम्बन्धियों से रूष्ट नहीं होते तो कभी कभी वे अदृश्य रूप से उनके लिए सुख का करक भी बन जाते है।

ज्योतिषीय दृष्ठिकोण से केवल पितृ दोष ही जीवन में असफलताओं और दुःखों का कारण नहीं होता अपितु कुंडली में स्थित ग्रहों के बलाबल ,स्थिति ,ग्रह दशा एवं गोचरादि की सकारात्मक एवं नकारात्मक ऊर्जा भी प्रमुख कारण हो सकता है। प्रारब्ध हमारे अधिकार में नहीं होते किन्तु वर्तंमान कर्म तो हमारे अधीन है, अतः अपने से बड़ो का सम्मान करके तथा उनको किसी प्रकार की कोई ठेस या दुःख नहीं पहुंचा कर हम पितृ दोष के विपरीत प्रभाव से बच सकते हैं।
श्राद्ध पक्ष में भोजन और दानादि का उद्देश्य यही है कि जाने अनजाने हमारे पूर्वजो का सम्मान हो एवं उस दान का फल उन्हें मिले जिससे वे जिस स्वरुप में हों खुश होकर हमें आशीर्वाद प्रदान करें।

गया श्राद्ध का बहुत महत्त्व है वैसे कई विद्वान अपने अपने मतानुसार बोधगया,नाभिगया या वैतरणी, पीठापुर ,सिद्धपुर और बद्रीनाथ (ब्रह्म कपाली)में भी श्राद्ध करने का विधान बताते है किन्तु प्रचलन एवं महत्त्व बोधगया (बिहार) का ही प्राचीन काल से माना गया है। पितृ दोष शांति के लिए निम्न उपाय भी किये जा सकते है:

  • घर के प्रत्येक आयोजन में पूर्वजों को याद कर क्षमतानुसार भोजन वस्त्रादि का दान करना।
  • शनिवार को पीपल में जल सींचे एवं सायंकाल दीपक प्रज्वलित करे।
  • अमावस्या को यथायोग्य दान करें यथा :मूली,सफ़ेद वस्त्र,दही ,रेवड़ी ,छाता दक्षिणा इत्यादि।
  • दक्षिण दिशा की और पैर करके नहीं सोवे।
  • श्राद्ध पक्ष में विधिपूर्वक श्राद्ध करें।
  • घर की दक्षिण-पश्चिम दिशा में पूर्वजों की फोटो लगाए। (नेऋत्य दिशा जो राहु की दिशा भी है)
  • बड़े बुजुर्गों के नित्य चरण छुएं।

यदि संभव हो तो गयाजी में किसी योग्य पंडित से त्रिपिंडी श्राद्ध और नरायण नागबलि पूजनादि अवश्य करवाएं।
मैंने अपने विवेकानुसार पितृ दोष पर प्रकाश डालने का एक सकारात्मक प्रयास किया है,मुझे आशा है आपका कुछ मार्गदर्शन होगा।
कल्याणमस्तु।। जय श्री महाकाल।।